1500 रुपयों से बने 1500 करोड़ के मसाला व्यापारी - महाशय धर्मपाल गुलाटी
- रिपोर्ट : इंदु सिंह 'इंदुश्री'
दिल्ली : 27 मार्च 1923 में अविभाजित भारत के सियालकोट जो बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बन गया में एक साधारण परिवार में जन्मे धर्मपाल गुलाटी जिन्हें आज हम मसाला किंग या एमडीएच वाले दादाजी या मसालों के जानकार के रूप में जानते है । उन्होंने अपने कठिन संघर्ष भरे जीवन और अनगिनत बाधाओं के सागर को अपनी जिद व जुनून से आत्मबल के सहारे पार कर खुद को साधारण से असाधारण बना लिया और एमडीएच (महाशिया दी हट्टी) नाम से एक ऐसा विशाल एम्पायर खड़ा किया जो आप अपनी पहचान है । इस तरह उन्होंने यह साबित किया कि निर्धन पैदा होना आपकी मजबूरी हो सकता लेकिन, गरीब रहते हुए ही मर जाना आपके जीवन की भूल कि जीने-मरने के मध्य अनेक अवसर प्राप्त होते जिनका सदुपयोग कर हम अपने हाथों से अपनी किस्मत बदल सकते पर, यह कार्य वही करते जो अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति का रोना रोने की जगह उसे बदलने का जज्बा रखते है । वह अपनी किस्मत नहीं बल्कि, अपने आप पर भरोसा करते इसलिए यदि शिक्षा के पंख भी पास नहीं तो भी वह केवल अपने आत्मविश्वास के बल पर सातों आसमान उड़कर छू लेते जिसे मात्र पांच जमात तक पढ़े धर्मपाल गुलाटी ने अपने बौद्धिक चातुर्य व व्यापारिक क्षमताओं से इस तरह साकार किया कि आज वह एक मिसाल व बिजनेस के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने वालों के लिए एक ऐसी सक्सेसफुल स्टोरी जिसे पढ़कर उन्हें भी विषम हालातों में भी कुछ कर गुजरने की प्रेरणा प्राप्त होती है ।
![]() |
इंदु सिंह 'इंदुश्री' |
एमडीएच मसालों के मैन्युफैक्चर, डिस्ट्रिब्यूटर और एक्सपोर्टर भी है जिनके बनाये गए मसाले सिर्फ अपने देश ही नहीं बल्कि, दुनिया भर में सप्लाई किये जाते है यह एक ऐसा ब्रांड जिसका नाम विश्व में मसालों के सबसे बड़े विक्रेता के रूप में जाना जाता और यह कई देशों में निर्यात किए जाते हैं जिनमें यूके, यूरोप, यूएई, कनाडा जैसे देश शामिल जो इसकी गुणवत्ता के परिचायक हैं । वे अपने बनाये गए मसालों का विज्ञापन भी स्वयं करते थे और किस तरह से उन्हें यह आइडिया आया उसका रोचक किस्सा भी वे स्वयं बताते है । एक बार किसी ऐड में दूल्हे के पिता का भूमिका करने वाला कलाकार नहीं आया तो पैसे बचाने उन्होंने यूं ही इसे कर लिया जिसके बाद उन्हें लगा कि वह अपने मसालों के ब्रांड एम्बेसडर दूसरों को बनाने के स्थान पर खुद ही क्यों न बन जाये तो इस तरह उन्होंने एक नई शुरुआत की जिसने उन्हें दादाजी के रूप में घर-घर में स्थापित कर दिया जो हमेशा के लिए उनके नाम के साथ चस्पा हो गया है । 2017 में भारत में सबसे अधिक वेतन पाने वाले एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सीईओ बने तो 2019 में भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया जिसे पाकर भी वह उसी तरह सहज-सरल व विन्रम बने रहे कि वह नैतिकता व व्यवहार उनके डीएनए में शामिल था । जिसने उन्हें समाज सेवा हेतु भी प्रेरित किया वह अपने वेतन की लगभग 90 प्रतिशत राशि दान कर देते थे और उन्होंने कई ऐसे काम किए जो समाज के लिए काफी मददगार साबित हुये जिनमें अस्पताल, स्कूल आदि बनवाना शामिल हैं जो उनके आंतरिक संवेदनशील स्वरूप को दर्शाता है ।
कुछ दिनों पूर्व उन्हें कोरोना भी हुआ जिसे उन्होंने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से पराजित कर दिया पर, आज सुबह 05:30 बजे उनके दिल ने हार मान ली और एक जिंदादिल, खुशमिजाज व जिंदगी से भरपूर शख़्सियत जो 98 को उमर में भी खुद को जवान समझता थी हृदयाघात से सबको आघात देकर चली गई जिसकी महक को हम अब सदा मसालों की खुशबू में महसूस करेंगे कि वह एमडीएच मसालों में हमेशा-हमेशा मौजूद रहेंगे कि विरले ही ऐसी हस्ती जन्म लेती है ।