- सतीश वशिष्ट
ए जांवाज, तुम्हें शत शत नमन है..
क्या शौक तेरा, सर पर बांधा कफ़न है...
जान गंवाते हो अपनी, मेरे चैन की ख़ातिर,
फक्र करता तुम पर आज यह सारा वतन है....
क्या शौक तेरा, सर पर बांधा कफ़न है.......
ठंड सायचिन की हो जा धूप बीकानेर की ....
सरहदें ही गुलशन तेरे, सरहदें ही तेरा चमन हैं ....
क्या शौक तेरा, सर पर बांधा कफ़न है......
हर शाम राह तकती तेरा जो.....
कोई वीरांगना, जो, इक रात की दुल्हन है....
क्या शौक तेरा, सर पर बांधा कफ़न है.....
जीने की चाहत दुनियां को,
तुझे मौत की ही लगन है,
सारा जहां देखने को आया,
तिरंगे में लिपटा जो तेरा बदन है.....
क्या शौक तेरा, सर पर बांधा कफ़न है....
तू मर कर भी अमर है, ए वीर इस जहां में ,
शहादत को तेरी भुलाना कठिन है....
क्या शौक तेरा सर पर बांधा कफ़न है..…..
ए जांवाज, तुम्हें शत शत नमन है..
ए जांवाज, तुम्हें शत शत नमन है.....